इतिहास अपने को दुहराता है (काव्य बयालीस व तेतालींस से सम्बन्धित कथा) मनुष्य को कभी भी कान का कच्चा नहीं होना चाहिये। प्रत्येक परिस्थिति को अपनी विवेक-तुला पर तौल कर ही अपने कत्र्तव्य स्थिर करना चाहिये। बुन्देलखण्ड मे एक कहावत प्रसिद्ध है कि, ‘‘सुनने वाला सावधान हो तो कान भरने वाले का जादू टोना छूमन्तर…
प्रकृति का प्रकोप भी उसे परास्त न कर सका (काव्य इक्कीस से सम्बन्धित कथा) प्रकृति चारों ओर शृंगार से ओत-प्रोत थी। सरिताएँ लहराती-इठलाती हुई अपने असीम प्रवाह से बह रही थीं बड़े-बड़े पर्वतराज अपना मोहक हरा परिधान पहिन कर दर्शकों को मोह लेते थे। निर्जन वन-खंड में एक ओर पपीहे को पी-पी पुकार और मेंढकों…
दिल्ली से विहार कर माताजी का हस्तिनापुर में आगमन मंगल विहार १८ नवम्बर १९८२, कार्तिक शु. ३ को मैं कम्मोजी की धर्मशाला से विहार कर नवीन शाहदरा आ गई। यहाँ दो दिन रुकने के बाद दिल्ली से विहार कर दिया। पूर्ववत् साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदीनगर, मेरठ होते हुए मवाना आई। वहाँ से २९ नवम्बर १९८२, कार्तिक…
नियमसार का सार इस द्रव्यानुयोग के वर्णन में जिस महान ग्रंथ नियमसार को लिया जा रहा है, वह इस युग के सर्वाधिक पूज्य आचार्य कुन्दकुन्ददेव द्वारा रचित हैं। ये वे ही कुन्दकुन्दाचार्य हैं, जिनका नाम समस्त जैन समाज में प्रत्येक मंगलमय अवसर पर अत्यंत श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी।…
भूमिका तीर्थेशा भावयित्वा या, भावना: स्वात्मसिद्धये। दीक्षाकल्याणकं प्रापु:, तेभ्यस्ताभ्यश्च च मे नम:।।१।। अर्थ – तीर्थंकरों ने जिन भावनाओं को-द्वादश अनुप्रेक्षाओं को भाकर अपनी आत्मा की सिद्धि के लिए दीक्षा लेने को उद्यमशील हुए-दीक्षाकल्याणक प्राप्त किया है । उन तीर्थंकर भगवन्तों को एवं उन बारह भावनाओं को मेरा नमस्कार होवे ।।१।। श्री कुन्दकुन्ददेव ने समयसार, रयणसार,…
भगवान बाहुबली भरत चक्रवर्ती छ: खण्ड की दिग्विजय करके आ रहे थे। उनका चक्ररत्न अयोध्या के बाहर ही रुक गया। मंत्रियों ने बताया कि महाराज आपके भाई आपके वश में नहीं हैं। चक्रवर्ती ने दूत को अपने अट्ठानवे भाइयों के पास भेज दिया। उन लोगों ने भगवान ऋषभदेव के पास जाकर मुनि दीक्षा ले…
जम्बूद्वीप एक लाख योजन विस्तृत गोलाकार (थाली सदृश) इस जम्बूद्वीप में हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी इन छह कुलाचलों में विभाजित सात क्षेत्र हैं— भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। भरत क्षेत्र का दक्षिण उत्तर विस्तार ५२६, ६/१९ योजन है। आगे पर्वत और क्षेत्र के विस्तार विदेह क्षेत्र तक दूने—दूने…
ढाईद्वीप में कर्मभूमियाँ कितनी हैं ढाईद्वीप में कर्मभूमियाँ कितनी हैं (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से एक सैद्धान्तिक वार्ता) चन्दनामती पूज्य माताजी! वंदामि, मैं आपसे ढाईद्वीप की कर्मभूमियों के संबंध में कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ। श्री ज्ञानमती माताजी- पूछो, जो भी पूछना है। चन्दनामती- मैंने तो अभी तक मुख्यरूप से १५ कर्मभूमियों के बारे में…
चारों अनुयोगों का महत्व प्रस्तुति- पू० गणिनी ज्ञानमती माताजी मंगलाचरण द्वादशांगश्रुतं भाव-श्रुतञ्चाप्युपलब्धये।चतुरनुयोगाब्धौ मेऽनिशमन्तोऽवगाह्यताम्।।७।। द्वादशांग श्रुत और भावश्रुत की उपलब्धि के लिये चारों अनुयोगरूपी समुद्र में मेरा मन नित्य ही अवगाहन करता रहे।(जिनेन्द्र भगवान के मुखकमल से निर्गत पूर्वापर विरोधरहित जो वचन हैं उन्हें आगम कहते हैं। उसके ही प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग ये चार…