परमात्म प्रकाश!
परमात्म प्रकाश – आचार्य श्री योगेन्दु देव द्वारा रचित एक महान आध्यात्मिक ग्रन्थ । जिसके स्वाध्याय से आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है ।
परमात्म प्रकाश – आचार्य श्री योगेन्दु देव द्वारा रचित एक महान आध्यात्मिक ग्रन्थ । जिसके स्वाध्याय से आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है ।
उपनयन संस्कार- मनुष्यों के आठ वर्ष की उम्र में अष्टमूलगुण के ग्रहणरूप एवं पंच अणुव्रतरूप जो व्रतों का पालन किया जाता है ।सोलह संस्कारों में यह एकसंस्कार है ।
कुंथलगिरि- महाराष्ट्र प्रदेश में कुंथलगिरि नामका सिद्धक्षेत्र है । जहाँ से कुलभूषण और देशभूषण नामके मुनिराजों ने मोक्षधाम को प्राप्त किया था ।बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर महाराज ने सन् १९५५ में इसी कुंथलगिरि की पहाड़ी पर समाधि ग्रहण करके इसका नाम इतिहास में अंकित करा दिया है ।
कातंत्र रूपमाला- श्री शर्ववर्म आचार्य द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक अपूर्व ग्रन्थ है , जिसके अध्ययन से जैन व्याकरण का पूर्ण ज्ञान प्राप्त होताहै । पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा हिन्दी टीका हुई है ।
नांदीमंगल विधि ( यहाँ प्रतिष्ठा की सम्पूर्ण विधि श्री नमिचन्द्र सैद्धान्तिकदेव द्वारा रचित प्रतिष्ठातिलक ग्रन्थ के अनुसार दी जा रही है । ) व्यासमध्यमसंक्षेपभेदतः सा त्रिधा मता । तत्र व्यासप्रतिष्ठा तु पूर्वमत्राभिधीयते ।। 5 ।। प्रतिष्ठा मध्यमा पश्चात्संक्षिप्ता सा ततः परम् । सिद्धादीनां प्रतिष्ठातस्तत उत्सवसंविधिः।। 6 ।। तत्र व्यासप्रतिष्ठा सा पंचकल्याणलक्षणा । वक्ष्यतेऽद्य प्रपंचेन प्रयोगैर्लक्षणान्वितैः…
==णमो सिद्धाणं== सिद्धों ([[सिद्ध]] [[परमेष्ठी]]) को नमस्कार हो । जो अरिहंत परमेष्ठी अघातिया कर्मों को नष्ट करके सिद्धशिला पर अमूर्तिक आत्मा के रूप में विराजमान हो जाते हैं और अनंत काल तक वहाँ अपनी आत्मा के अनंत सुख में निमग्न रहते हैं , वे सिद्ध परमात्मा कहे जाते हैं ।
==णमो अरिहंताणं== अरिहंतों ([[अरिहंत]] [[परमेष्ठी]]) को नमस्कार हो । जो मुनिराज तपस्या के द्वारा चार घातिया कर्मों का नाश कर अनन्तचतुष्टय गुणों को प्राप्त कर लेते हैं , वे अरिहंत परमेष्ठी कहलाते हैं ।
सोलह कारण भावना प्रस्तुति – गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी श्रेयोमार्गानभिज्ञानिह भवगहने जाज्ज्वलद्दु:खदाव-स्कन्धे चंक्रम्यमाणानतिचकितमिमानुद्धरेर्यं वराकान्।।इत्यारोहत्परानुग्रहरसविलसद्भावनोपात्तपुण्य-प्रक्रान्तैरेव वाक्यै: शिवपथमुचितान् शास्ति योऽर्हन् स नोऽव्यात् ।।१।। अर्थ-इस संसाररूपी भीषण वन में दु:खरूपी दावानल अग्नि अतिशय रूप से जल रही हैं। जिसमें श्रेयोमार्ग-अपने हित के मार्ग से अनभिज्ञ हुए ये बेचारे प्राणी झुलसते हुए अत्यंत भयभीत होकर इधर-उधर भटक…
विद्युत्प्रभ गजदंत पर्वत पर ९ कूट विद्युत्प्रभ पर्वत के ऊपर सिद्ध, विद्युत्प्रभ नामक, देवकुरु, पद्म, तपन, स्वस्तिक, शत उज्ज्वल (शतज्वाल), सीतोदा और हरि, इन नामों से भुवन में विख्यात और अनुपम आकार वाले नौ कूट हैं। इन कूटों की उँचाई अपने पर्वत की उँचाई के चतुर्थ भागप्रमाण है।।२०४५-२०४६।। उन कूटों की लम्बाई और विस्तारविषयक उपदेश…