चन्दर्षि महत्तर!
चन्दर्षि महत्तर A Shvetambar Acharya. श्र्वेताम्बर पंचसंग्रह प्राकृत तथा उसकी सर्वोपज्ञ टीका के रचयिता एक प्रसिद्ध श्र्वेताम्बर आचार्य(ई.श. . ९-१०)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चन्दर्षि महत्तर A Shvetambar Acharya. श्र्वेताम्बर पंचसंग्रह प्राकृत तथा उसकी सर्वोपज्ञ टीका के रचयिता एक प्रसिद्ध श्र्वेताम्बर आचार्य(ई.श. . ९-१०)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
देवविमान Space vehicles of deities. देवों के विमान, तीर्थंकर की माता के 16 स्वप्नों में 13 वां स्वप्न जिसका फल यह होता है कि उत्पन्न होने वाला ‘जीव स्वर्ग से अवतीर्ण होगा। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
गुप्तिऋद्धि Name of a disciple of Guptishruti. गुप्तिश्रुति के शिष्य तथा शिवगुप्ति के गुरु थे . समय-ई.२ 3।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुखस्थ कमल–Mukhast Kamal. A type of meditation, to establish ‘Saa’ (a mystic word) into the mouth. पदस्थ धयन की प्रक्रिया के अंतर्गत एक क्रिया, मुख स्तिथि कमल जहा पंचाक्षरी मन्त्र (असिआउसा) के‘सा’ को स्थापित किआ जाता है”
गुणिदेश The residence of a substance. गुणी द्रव्य का देश; यह एक वस्तु के अनेक धर्मों की अभेदवृत्ति है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]] मक्खन:- Makkhana. Butter. नवनीत ; 22 अभ्यक्षों में एक अभ्य्क्ष (दूध या दही से मक्खन निकलने के एक मुहर्त पश्चात्त्र स जीवों की उत्पत्ति होने के कारण अभयक्ष कहलाता हैं ) “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रात – Brata. A king of kuru dynasty. कुरुवंश की प्रथम वंशावली का एक राजा “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सप्तद्वीपिक भूगोल – Saptadveeepika Bhuugola. Geography of seven particular islands on the earth which are interrelated to one another (according to Vedic geography). वैदिक भूगोल जिसके अनुसार पृथिवी पर जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, शाक और पुष्कर ये 7 द्वीप है। तथा लवगोद, इक्षुरस, सुरोद, सर्पिस्सलिल, दधितोय, श्रीरोध और स्वादुसलिल ये 7 समुद्र जो चूड़ी…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सत्य महाव्रत – Satya Mahaavrata. Great vow of true speech (right speaking according to text). राग द्वेष या मोह से प्रेरित जैन साधुओं द्वारा सब प्रकार के झूठ वचनों का त्याग करना और आगम के अनुरूप बोलना सत्य महाव्रत है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सन्निधिकरण – Sannidhikarana. Drawing near, visionary installation of lord in heart while worshipping. सम्मुख या निकट होना सन्निधिकरण है। पूजा करते समय उपसाय को अपने हृदय मे बिठाना सन्निधिकरण कहलाता है। पूजा के 5 अंगो मे तीसरा अंग है।