ध्रुवचारी!
ध्रुवचारी One progressing on the path of salvation constantly. जो सतत मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हैं । [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
ध्रुवचारी One progressing on the path of salvation constantly. जो सतत मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हैं । [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == योनियाँ : == ते ते कर्मत्वगता: पुद्गलकाया: पुनरपि जीवस्य। संजायन्ते देहा: देहान्तरसंक्रमं प्राप्य।। —समणसुत्त : ६५९ इस प्रकार कर्मों के रूप में परिणत वे पुद्गल—पिण्ड देह से देहान्तर को—नवीन शरीर रूप परिवर्तन को—प्राप्त होते रहते हैं। अर्थात् पूर्वबद्ध कर्म के फलरूप में नया शरीर बनता है और नये…
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वसमय – Svasamaya. Jaina philosophy, Jaina spiritual treatises, engrossment into self, self absorption. जैन सिद्वांत, आध्यात्मिक ग्रंथ, स्वपक्ष प्रतिपादन करने वाले न्याय गं्रथ। समयसार के अनुसार पर पदार्थों से छूटकर अपने उपयोग को अपने आत्मा मे रमण करना, स्वचारित्र अथवा जो दर्षन, ज्ञान और चारित्र मे स्थिर होकर (तद्रुप होकर) रहता है वह स्वसमय…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शैलेशी अवस्था – Shaileshee Avasthaa. Motionless state, state of absolute meditation.. पत्थर की मूर्ती के समान निश्छल ध्यानावस्था ” वन में इस प्रकार के ध्यानी मुनियों के शरीर से हिरण आदि पशु उन्हें पत्थर समझकर उनसे अपने शरीर को रगड़कर अपनी खाज मिटाते हैं ” अंतिम शुक्लध्यान की अवस्था “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वर्णकूला नदी – Svarnakuulaa Nadii. Name of a river of Hairanyavata region. हैरण्यवत क्षेत्र की एक नदी। यह 14 महानदियो मे 11वीं महानदी है एवं पुण्डरीक सरोवर से निकलती है।
धृतिक्रिया मंत्र Some particular type of mantras-mystic words. सज्जातिदातृभागी भव, सद्गृहिदातृभागी भव, आदि धृतिक्रिया के मंत्र है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेखलापुर– Mekhalpur. A city in the southern Vijayardh mountain. विजयार्धकी दक्षिण श्रेणी का एक नगर”
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्वरुप – Svruupa. Own form or shape, nature. आकृति आकार लक्षण।
धूमचारणऋद्धि A type of supernatural power, passing through spreaded smoke without any violence of micro beings. एक चारण ऋद्धि जिसके प्रभाव से मुनिजन नीचे ऊपर और तिरछे फैलने वाले धुएँ का अवलम्बन करके अस्खलित पादक्षेप करते हुए गमन करते हैं। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संल्लेखना : == संलेखना च द्विविधा, अभ्यन्तरिका च बाह्या चैव। अभ्यन्तरिका कषाये, बाह्या भवति च शरीरे।। —समणसुत्त : ५७४ संल्लेखना दो प्रकार की है—आभ्यन्तर और बाह्य। कषायों को कृश करना आभ्यन्तर संल्लेखना है और शरीर को कृश करना बाह्य संल्लेखना है। कषायान् प्रतनून् कृत्वा, अल्पाहार: तितिक्षते। अथ भिक्षुग्र्लायेत्…