श्री वीरसागर स्तोत्रं
श्री वीरसागर स्तोत्रं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी बसंततिलका छंद सिद्धिप्रदं सकलतापहरं प्रसिद्धं, रत्नत्रयं परमसौख्यनिधिं दधान:। निष्विंकंचनोऽपि विबुधै: खलु कथ्यमान:, श्री वीरसागर गुरुर्हृदि तिष्ठतान्मे।।१।। सिद्धांतसारमवगम्य हितोपदेशी, गंभीर धीर मितवाक्प्रभृतेर्गुणाब्धि:। आचार शास्त्रमवगाह्य पटु: क्रियासु, श्री वीरसागर गुरुर्हृदि तिष्ठतान्मे।।२।। आत्मस्वभाव निरत: शिवसौख्यलिप्सु, मोक्षैक साधनविधौ कुशलो महात्मा। आजन्मकामविजयी मुनिनायकस्त्वं, श्री वीरसागर गुरुर्हृदि तिष्ठतान्मे।।३।। अध्यात्म शास्त्रनिपुणो निजतत्त्ववेदी, साम्यामृतस्वरसनिर्झरणी निमग्न:। स्वात्मैकसौख्यरस...