बाह्य त्याग!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बाह्य त्याग – Bahya Tyaga. To renounce all attachments (external materi- als). समस्त बाह्य परिग्रहो (धन धान्यादी ) का त्याग करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बाह्य त्याग – Bahya Tyaga. To renounce all attachments (external materi- als). समस्त बाह्य परिग्रहो (धन धान्यादी ) का त्याग करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] पृष्ठक – Prsthaka. Name of the 28th patal (layer) & Indrak of saudharma heaven. सौधर्म स्वर्ग के २८ वें पटल व इंद्रक का नाम “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वगुरु स्थापनावाप्ति क्रिया – Svaguru-Sthapanaavaapti kriyaa. A type of auspicious activity, entrusting the responsibility of group by the chief saint to other succeeding saint.गर्भन्वय की 53 क्रियाओ मे 23 वी क्रिया। गुरु की भांति स्वयं भी अवस्था विषेष को प्राप्त हो जाने पर संध से योग्य षिष्य को छांटकर उसे गुरु पद का भार…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == साधक : == बाह्यमूघ्र्वमादाय, नावमाकांक्षेत् कदाचित् अपि। पूर्वकर्मक्षयार्थाय, इमं देहं समुद्धरेत्।। —समणसुत्त : ५६८ ऊध्र्व अर्थात् मुक्ति का लक्ष्य रखने वाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न रखे। पूर्वकर्मों का क्षय करने के लिए ही इस शरीर को धारण करे। चरेत्पदानि परिशंकमान:, यत्कििंचत्पाशमिह मन्यमान:। लाभान्तरे जीवितं…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == समता : == किं करिष्यति वनवास: कायक्लेशो विचित्रोपवास:। अध्ययनमौनप्रभृतय:, समतारहितस्य श्रमणस्य।। —समणसुत्त : ३५३ समतारहित श्रमण का वनवास, कायक्लेश, विचित्र उपवास, अध्ययन और मौन व्यर्थ है। एक्कु करे मं विण्णिकरि, मं करि वण्ण विसेसु। इक्कइँ देवइं जे वसइ, तिहुयणु एहु असेसु।। —परमात्मप्रकाश : २-१०७ हे जीव ! तू…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्याद्भव्यत्व – Syaadbhavyatva. Separate or different entities of matter.द्रव्य के समान 11 स्वभावो मे एक स्वभाव। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रुप नही होता, यह अभव्य स्वभाव है, अतः द्रव्य अपने स्वभाव को नही छोड़ता।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भव्यकुमुदचन्द्रिका – Bhavyakumudachandrika. Name of a treatise written by Pandit Ashadhar. पं. आशाधर (ई. ११७३- १२४३) कृत एक ग्रंथ “
जननाभिषव An auspicious bathing (anointment) of Jaina Lord (Tirthankar). तीर्थंकरों का जन्माभिषेक ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्यादचेतन – Syaadacetana. Exposition of soul as inanimate because of its relationship with karmas, which are inanimate.कर्म अचेतन है एवं जीव से सम्बद्व है, इस दृष्टि से जीवो को अचेतन कह देना।