आर्यनंदि!
आर्यनंदि Disciple of ‘Acharya Chandrasen’ and spiritual guide of Veersen ji. पंचस्तूप संघ की पट्टावली के अनुसार चंद्रासेन के शिष्य तथा वीरसेन (धवलाकार) के गुरू थे (ई.767-798)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आर्यनंदि Disciple of ‘Acharya Chandrasen’ and spiritual guide of Veersen ji. पंचस्तूप संघ की पट्टावली के अनुसार चंद्रासेन के शिष्य तथा वीरसेन (धवलाकार) के गुरू थे (ई.767-798)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] साधु प्रासुक परित्यागता – Saadhu Praasuka Pariytaagataa. A great & meaningful renouncement(reg. perception, knowledge & faith) done by Jaina saints. दया बुद्धि से साधुओं के द्वाराकिये जाने वाले दर्शन, ज्ञान व चारित्र के परित्याग या दान का नाम प्रासुक परित्यागता है। षट्खंडागम के अनुसार 16 कारण भावनाओं में यह एक भावना ।
ऋषभजयन्ती व्रत Vow of the birthday celebration of Jaina-Lord Rishabhadev. भगवान आदिनाथ की जयन्ती चैत्र कृष्ण 9 को उपवास व पूजन।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
दंड समुद्घात Expansion of spaces of soul in term of 14 Rajju. केवली के समुद्घात करने का प्रथम चरण, केवली भगवान की आयु कर्म की स्थिति वेदनीय , नाम, गोत्र के बराबर करने के लिए आत्मा के प्रदेश वातवलय को छोड़कर दण्डरूप से 14 राजू तक फैल जाते हैं। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विशेष संग्रह नय – Vishesha Samgraha Naya. A word or phrase used for expressing a collec- tive form of something like herd of elephants etc. दृष्टांतों के द्वारा प्रत्येक जाति के समूह को नियम से एक वचन के द्वारा स्वीकार, करके कथन करने वाला नय ” जैसे – हाथियों का झुण्ड, घोड़ों…
[[श्रेणी: शब्दकोष]] परमार्थ प्रत्यक्ष: Direct non-sensory perception, direct intuition.प्रत्यक्ष प्रमाण का एक भेद, जो बिना किसी की सहायता से पदार्थ को स्पष्ट जानता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सादृश्य – Saadrshya. Resemblance, similarity. एकरुपता, समानता, समान धर्म।
ऋजुत्व To be well versed in telepathic knowledge (Manah Paryaya Gyan). यर्थात मन, वचन और कायिक चेष्टागत होने से ऋजुमति मन पर्ययज्ञान में ऋजुत्वपना है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सात भय – Saata Bhaya. Seven kinds of fears. इहलोक, परलोक, अरक्षा, अगुप्ति, मरण, वेदना और आकस्मिक भय ये सात भय है
झूठ- मर्मच्छेदी पुरूषवचन, उद्वेगकारी कटुवचन, वैरोत्पादक, भयोत्पादक, तथा अवज्ञाकारी वचन इस प्रकार के वचन अप्रिय हैं तथा हास्य भीति लोभ क्रोध द्वेष इत्यादि कारणों से बोले जाने वाले वचन सब झेठ (असत्य) हैं।[[श्रेणी:शब्दकोष]]