शुभ वचन!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभ वचन – Shubha Svapna. Auspicious dreams. वात, पितादि के प्रकोप से रहित सूर्य चंद्रमा आदि को देखना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभ वचन – Shubha Svapna. Auspicious dreams. वात, पितादि के प्रकोप से रहित सूर्य चंद्रमा आदि को देखना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समयसार कलश – Samayasaara Kalasha. Name of a specific composition by Acharya Amritchandra. आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा समयसार की आत्मख्याति टीका मे प्रयुक्त किये गये विशेष छंद कलश नाम से कहे गये है। समय ई. 905-955।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पद्मनंदि पंचविंषतिका : A book written by Acharya Padmanandi. आचार्य पदमनन्दि (ई0 11 का उत्तरार्ध) द्वारा संस्कृत छंदों में रचित गृहस्थ धर्म प्ररूपक एक ग्रन्थ । इस ग्रंथ के स्वाध्याय से गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी को गृहस्थवस्था में अल्पआयु।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विद्युत्प्रभ – Vidyutprabha. One of the 4 Gajadant mountains, A city of vijayardh mountain. ४ गजदंत पर्वतों में एक गजदंत पर्वत, विजयार्ध पर्वत का एक नगर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुभध्यान – Shubhadhyaana. Auspicious involvement. शुभद्ध्यान और शुक्लध्यान जो मोक्ष के कारण हैं “
[[श्रेणी: शब्दकोष]] पदार्थ श्रद्धान: Real & right belief in all 9 mattars सम्यग्दर्शन हिंसादि रहित धर्म, अठारह दोष रहित आप्त, निग्र्रन्थ प्रवचन व गुरू में श्रद्धान रखना । 9 पदार्थो के यथार्थ श्रद्धान से सम्यग्दर्षन होता है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == गुणस्थान : == यैस्तु लक्ष्यन्ते, उदयादिषु सम्भवैर्भावै:। जीवास्ते गुणसंज्ञा निर्दिष्टा: सर्वर्दिशभि:।। मिथ्यात्वं सास्वादन: मिश्र:, अविरतसम्यक्त्व च देशविरतश्च। विरत: प्रमत्त: इतर: अपूर्व: अनिवृत्ति: सूक्ष्मश्च।। उपशान्त: क्षीणमोह: संयोगिकेवलिजिन: अयोगी च। चतुर्दश गुणस्थानानि च, क्रमेण सिद्ध: च ज्ञातव्या।। —समणसुत्त : ५४६-५४८ मोहनीय आदि कर्मों के उदय आदि (उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि)…
[[श्रेणी: शब्दकोष]] पदधन: Sum of progression. सर्वधन, अगल-अलग पदों को जोडने पर प्राप्त प्रमाण ।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला –ViraJnanodayaGrarnthamala Name of alarge Jain Granthmala(publishing centre)established in the year 1972 on the inspiration of GaniniShriGyanmatiMataji at Jambudvip – Hastinapur (Meerut). U.P. it is managed by ‘Digambar Jain TrilokShodhSansthan’ and nuber of jain treatises have been published and are being published form here. See the list of its all…
चतुर्मुख यज्ञ A type of worship (performed by kings). देखें-चतुर्मुखमह।[[श्रेणी:शब्दकोष]]