आलेखित!
आलेखित Written displayed or Intuitional illustration. चित्रित लिखा हुआ ध्यान में स्थिरता के पुरिपुष्ट हो जाने पर ध्येय का सवरूप ध्येय के सन्निकट न होते हुए भी स्पष्ट रूप से प्रतिभासित होना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आलेखित Written displayed or Intuitional illustration. चित्रित लिखा हुआ ध्यान में स्थिरता के पुरिपुष्ट हो जाने पर ध्येय का सवरूप ध्येय के सन्निकट न होते हुए भी स्पष्ट रूप से प्रतिभासित होना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
देवागम स्तोत्र A religious hymn written by Acharya Samant- bhadra. आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित एक स्तोत्र । अपरनाम-आप्तमीमांसा।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संबंध – Sanbandha. Alliance, Relation, Connection. संयोग, मिलाप, साहचर्य ” जहां पर अभेद प्रधान और भेद गौण होता है वहां पर संबंध समझना चाहिए “
उद्भाव Origination, Production, Appearance. उत्पत्ति सन्तति उत्पादन।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रिति – Shriti. Dependence, support, approach, Multiplicative increase in virtues. अवलम्ब, सहारा, पहुंच ” सम्यग्दर्शन आदि शुद्ध गुणों की गुणित रूप उत्तरोत्तर उन्नत अवस्था को प्राप्त कर लेना यह भाव श्रिति है, एवं सोपान पंक्तिक्रम से चढना यह द्रव्य श्रिति है ” भक्त प्रत्याख्यान सल्लेखना विधि के 40 अधिकारों में 9वां अधिकार, शुभ परिणामो…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावाभिनन्दी – Bhavabhinadi. The welcomer of the worldly existence. सांसारिक अस्तित्व का अभिनन्दन करने वाला “
उद्वेग Anxiety, Restlessness. इष्ट के वियोग में विह्वल भाव या घबराहट का भाव होना अर्थात् चिन्ता खेद विसमय आदि का होना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == साहसी : == जाव य ण देन्ति हिययं पुरिसा कज्जाइं ताव विहणंति। अह दिण्णं तिय हिययं गुरुं पि कज्जं परिसमत्तं।। —कुवलयमाला जब तक साहसी पुरुष कार्यों की तरफ अपना ध्यान नहीं देते, तभी तक कार्य पूरे नहीं होते हैं। किन्तु उनके द्वारा कार्यों के प्रति हृदय लगाने से…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संप्रति – Sanprati. Present time, Another name of king Chandragupt-II. वर्तमान, मगधराज अशोक का पौत्र, अपरनाम चन्द्रगुप्त द्वितीय ” समय – ई.पू. 220-211 “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == गुणी : == लच्छीए विणा रयणायरस्स गम्भीरिमा तहज्जेव। सा लच्छी तस्स विणा कस्स न गेहे परिब्भई।। —गाहारयणकोष : ४५ लक्ष्मी के बिना भी रत्नाकर की गंभीरता तो वैसी ही बनी हुई है, किन्तु सागर को छोड़कर चली गई लक्ष्मी को कहाँ—कहाँ नहीं भटकना पड़ता ? ठाणेसु गुणा पथड़ा ठाणाणि,…