देवायु कर्म!
देवायु कर्म Celestial life-span Karma, Celestial Longevity determining Karma. आयु कर्म का एक भेद जिसके उदय से जीव निश्चित समय तक देव शरीर में रूका रहे।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
देवायु कर्म Celestial life-span Karma, Celestial Longevity determining Karma. आयु कर्म का एक भेद जिसके उदय से जीव निश्चित समय तक देव शरीर में रूका रहे।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सज्जन-दुर्जन : == सुजणो वि होइ लहुओ, दुज्जणसंमेलणाए दोसेण। माला वि मोल्लगरुया, होदि लहू मउयसंसिट्ठा।। —भगवती आराधना : ३४५ दुर्जन की संगति करने से सज्जन का महत्व गिर जाता है, जैसे कि मूल्यवान माला मुर्दे पर डाल देने से निकम्मी—तुच्छ, त्याज्य हो जाती है। सरिसे वि मणुयजन्मे डहइ…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्राह्मी – Brahmi. Name of the daughter of Lord Rishabhadeva. इस युग की प्रथम आर्यिका साध्वी; भगवान ऋषभदेव की पुत्री, सर्वप्रथम पिता से लिपि विधा सीखी एंव प्रयाग नगरी में उन्हीं से दीक्षित होकर समवसरण की प्रथम गणिनी बनी “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वस्थान संक्रमंण – Svasthaana Sammkramana. A type of karmic transition. संक्रमण के दो भेदो मे एक भेद। स्वस्थान मे अर्थात् अपने ही अन्य संग्रहकृष्टियो मे संक्रमण करना अर्थात् तद्रूप परिणमन करनां।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == श्रावक : == जो बहुमुल्लं वत्थु, अप्पमुल्लेण णेव गिण्हेदि। वीसरियं पि न गिण्हदि, लाभे थूर्एाह तूसेदि।। — कार्तिकेयानुप्रेक्षा : ३३५ वही सद्गृहस्थ श्रावक कहलाने का अधिकारी है, जो किसी की बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य देकर नहीं ले, किसी की भूली हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करे और थोड़ा…
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्ववष – Svavasa Own control or self controlled. आत्मवष, जो परभाव को त्यागकर निर्मल स्वभाव वाले आत्मा को ध्याता है वह स्ववष है।
उपशमावली Subsidential time (the smallest). जिस आवली में कर्म का उपशम हो।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यमपाल चांडाल–Yampal Chaandal. Name of a particular brute (Chandal), great person worshipped by deities for observing vow of non–violence on Chaturdarshi. जिसने चतुर्दशी को हिंसा न करने की प्रतिज्ञा ली थी, हिंसा न करने से देवताओ से पूजित हुआ”
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वर्ग – Svarga. The heaven, aboding place of deities. इसका अपरनाम कल्प है ये ऊध्र्वलोक मे स्थित है। स्वर्ग के दो, विभाग है-कल्प व कल्पातीत। यहाॅ वैमानिक देव रहते है अथवा कल्पोपपन्न व कल्पातीत देवो के रहने के स्थान।