संभवचरिउ!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संभवचरिउ – Sambhavachariu. Name of a treatise written by poet Tejapal. कवि तेजपाल द्वारा (ई. 1443) रचित यथनाम विषयक अपभ्रंश ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संभवचरिउ – Sambhavachariu. Name of a treatise written by poet Tejapal. कवि तेजपाल द्वारा (ई. 1443) रचित यथनाम विषयक अपभ्रंश ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नागहस्ती – Nagahasti Name of great saint. आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबली के समकक्ष के एक मुनि ” व्यग्रहस्ती के शिष्य और जीत्दंड के गुरु (समय ई. 93-162) ”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मय – Mya. Father’s name of Mandodari, A king of Yadav dynasty. मंदोदरीकेपिताकानाम , यदु (यादव) वंशकाएकराजा “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्लेष संबंध – Shlesa Sambandha. Close relation (togetherness). संश्लेष संबंध, परस्पर संबंध को प्राप्त होना, जैसे काष्ठ और लाख का संबंध, दूध और जल का संबंध “
इंद्रिय व्याधि Diseases, Internal deterioration. इन्द्रिय बीमारी इन्द्रिय विषयों में आसक्ति हर्ष विषाद।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संघ : == संघो गुणसंघात:, संघश्च विमोचकश्चकर्मणाम्। दर्शनज्ञानचरित्राणि, संघातयन् भवेत् संघ:।। —समणसुत्त : २५ गुणों का समूह संघ है। संघ कर्मों का विमोचन करने वाला है। जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र का संघात (रत्नत्रय की समन्विति) करता है, वह संघ है। कर्मरजजलौघविनिर्गतरस्य, श्रुतरत्नदीर्घनालस्य। पंचमहाव्रतस्थिरर्किणकस्स, गुणकेसरवत:।। श्रावकजन—मधुकर—परिवृतस्य, जिनसूर्यतेजोबुद्धस्य। संघपद्मस्य…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रुतावतार (ग्रंथ) – Shrutaavtaara (Grantha). Name of two different treatises written by Acharya Indranandi & by Acharya Shreedhar. आचार्य इंद्रनंदि (ई.श. 10 -11) द्वारा रचित प्राकृत गाथाबद्ध भगवान महावीर के निर्वाण से 683 वर्ष पर्यंत की मूलसंघ की पट्टावली, आचार्य श्रीधर (ई.श. 14) द्वारा रचित प्राकृतछंदबद्ध ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सचित्तापिधान – Sachittaapidhaana. Covering food with leaf etc. (objects having life), an infraction of vow of hospitality. सचित्त वस्तुओं अर्थात् पत्ते आदि से आहार ढांकना, अतिथि-संविभाग व्रत का एक अतिचार “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सम्यक् ज्ञान : == यथा यथा श्रुतमवगाहते, अतिशयरसप्रसरसंयुतमपूर्वम्। तथा तथा प्रह्लादते मुनि:, नवनवसंवेगश्रद्धाक:।। —समणसुत्त : २४७ जैसे—जैसे मुनि अतिशय रस के अतिरेक से युक्त अपूर्वश्रुत का अवगाहन करता है, वैसे—वैसे नित—नूतन वैराग्ययुक्त श्रद्धा से आह्लादित होता है। सूची यथा ससूत्रा, न नश्यति कचवरे पतिताऽपि। जीवोऽपि तथा ससूत्रो, न…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रुतज्ञानावरण – Shrutgyaanaavarana. Karmas obscuring the Shrutgyaana (scriptual knowledge). ज्ञानावरण कर्म का एक भेद; जो कर्म श्रुतज्ञान को आवरण करे “