मनःप्रत्याखयान!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मनःप्रत्याखयान Renunciation of all infractions mentally. मन से मैं अतिचारों को भविष्यत्काल में नहीं करूंगा , ऐसा विचार करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मनःप्रत्याखयान Renunciation of all infractions mentally. मन से मैं अतिचारों को भविष्यत्काल में नहीं करूंगा , ऐसा विचार करना “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्ववचनबाधित – Svavacanabaadhita. Self obstructive speech. बाधित विषय हेत्याभास के 4 भेदो मे अंतिम भेद। जिसके साध्य मे अपने वचन से ही बाधा आती है। जैसे- मेरी माता बन्ध्या है क्योकि पुरुष का संयोग होने पर भी उसके गर्भ नही ठहरता।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवनपुर – Bhavanapura. A type of residential places of deities. द्वीप व समुद्रों के ऊपर स्थित भवनवासी देवों के निवास स्थान “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बीज – Bija. Mystical letter of Mantra or incantation, Seeds. मंत्रो का मूल अक्षर या शब्द ” जिनमें वनस्पति आदि रूप अंकुरण करने की क्षमता हो “
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्वरुपास्तित्व – Svaruupaastitva. A type of existence; power to show existence of each & every matter separately. अस्तित्व के दो भेदो मे एक भेद। अवान्तर सत्ता-प्रतिनियत वस्तुवर्ती तथा स्वरुपास्तित्व की सूचना देने वाली (अर्थात् पृथक्-पृथक् पदार्थ का पृथक्-पृथक् स्वतंत्र अस्तित्व बताने वाली ) अवान्तरसत्ता है।
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यमक–Yamak. Name of the mountain situated at the bank of Sita & Sitoda rivers in Uttarkuru and Devkuru. विदेह क्षेत्र के उत्तरकुरु व देवकुरु में सीता व सितोदा नदी के दोनों तटो पर स्थित चार कुटाकार पर्वत”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संधान – Sandhaana. Pickles, Jam (non-edible according to Jain philosophy). अचार व मुरब्बा ” त्रस जीवों से संसिक्त होने से ये अभक्ष्य हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विभाव गुण व्यंजन पर्याय – Vibhava Guna Vyamjana Paryaya. Sensory knowledge, scriptural knowledge etc. are called as vibhava Guna Vyanjana paryaya of Jivas (souls). मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि जीव की विभाव गुण व्यंजन पर्यायें हैं “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वयंभू – Svayammbhuu. Name of the 19th predestined Jaina Lord, The first chief disciple of lord Kunthunath, Lord Parshvanath, The main Listener in the assembly of Lord Vasupujya. भावीकालीन 19 वे तीर्थकर, तीर्थकर कुंथ्ुानाथ व पाश्र्वनाथ के प्रथम गणधर, तीर्थकर वासुपूज्य के मुख्य श्रोता।