निनार्मिक!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निनार्मिक – Ninaarmika. The so of king Gangdev who took birth later as the 9th Narayana ‘Krishna’. राजा गंगदेव का जिसने मुनि बन तपस्या की और अगले भाव में ‘कृष्ण’ नामक नवां नारायण हुआ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निनार्मिक – Ninaarmika. The so of king Gangdev who took birth later as the 9th Narayana ‘Krishna’. राजा गंगदेव का जिसने मुनि बन तपस्या की और अगले भाव में ‘कृष्ण’ नामक नवां नारायण हुआ “
आहारक शरीर नामकर्म प्रकृति Chief and secondary parts of Aharak Sharir. वह नामकर्म प्रकृति जिससे आहारक शरीर बनता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्जरा अनुप्रेक्षा – Nirjaraa Anuprekshaa. Contmplation on dissociation of karmas निर्जरा में निमित ऐसे अनशन आदि 12 प्रकार के तप का विचार करना “
उन्मग्नजला नदी Name of a river of Vijayardha mountain. विजयार्ध पर्वत की तमिस्र गुहा में बहने वाली नदी इसे उन्मग्न इसलिये कहते हैं कि यह अपने जल में पड़े हुए द्रव्य को डुबाती नहीं है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निरुद्ध अविचार भक्त प्रत्याख्यान – Niruddha Avichaara Bhakta Pratyaakhyaana. Slow renunciation of food for ritualistic death. सल्लेखना की एक विधि-रोग से पीड़ित हो जाने के कारणजिसका जंघाबल क्षीण हो गया हो, ऐसे मुनि इस विधिपूर्वक समाधि ग्रहण करते है “
उत्तरायन Movements towards north side (of Sun etc.). संचार सूर्य का 6 महा (1 अयन) उत्तर दिशा की ओर संचार करना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निराकार उपयोग – Nirakaara Upayoga . Apprehension of shapelessness. दर्शनोंपयोग; जिसमें आकार रहित पदार्थ का सामान्य आभास होता है ” अर्थात् निश्चयरहित ज्ञान का नाम निराकार उपयोग है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सुवत्सा – Suvatsaa. Name of a country and name of a summit & its governing deity of Trikut Vakshar situated in eastern Videh (region). पूर्व विदेह क्षेत्र का एक देष, कुण्डला नगरी यहाॅं की राजधानी है, पूर्व विदेहस्त त्रिकूट वक्षार का एक कूट व उसका स्वामी देव ।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निरनुबन्ध योग – Niranubandha Yoga. Activities (reg.mind, speech & body) without binding of new Karmas. बन्ध रहित योग “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लोकविभाग – Lokavibhaaga.: Name of a treatise written by saint Sarvnandi. सर्वनंदी कृत एक ग्रंथ ,जिसमे लोक के स्वरूप का वर्णन है “समय –ई. 458 “