रोगराहित्य!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रोगराहित्य – रोगरूपी बाधा का अभाव होना। अर्हत भगवान के देवकृत अतिषयों में एक अतिषय। समवषरण में सम्पूर्ण जीवों को रोग आदि की बाधाए नही होना। Rogarahitya-Devoid of disease, an excellence of lord Arihant
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रोगराहित्य – रोगरूपी बाधा का अभाव होना। अर्हत भगवान के देवकृत अतिषयों में एक अतिषय। समवषरण में सम्पूर्ण जीवों को रोग आदि की बाधाए नही होना। Rogarahitya-Devoid of disease, an excellence of lord Arihant
जम्बूद्वीपव्रत A type of vow (fasting) to be observed for different 78 days related to the 78 natural temples of Jambudvip. जम्बूद्वीप क्व सुदर्शन मेरू के १६ , गजदन्त के ४ , जम्बू शाल्मलिवृक्ष के २, वक्षार के १६ , विजयार्ध के ३४ , षट्कुलाचल के ६ ऐसे १६+४+२+१६=७८ जिन्मंदिरों के ७८ वृत करना होते…
तंत्रवार्तिक Name of a commentary book written by Kumaril Bhatta. मीमांशा दर्शन की कुमारिल भट्ट (ई.700)रचित एक गंथ। [[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] राजवृत्ति – राजा का कार्य, पक्षपात हो कुल की मर्यादा, बुद्धि और अपनी रक्षा करते हुए न्याय पूर्वक प्रजा का पालन करना राजाओं की राजवृत्ति कहलाती है। Rajavrtti-Ruling duties of a king
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूतबली – Bhutabali. Name of a great Acharya, the disciple of Acharya Arhadvali. एक आचार्य (ई. ६६-१५६)जिनके दीक्षा गुरु आचार्य अर्ह्द्वली और शिक्षा गुरु ध्ररसेन थे ” इन्होनें षट्खंडागम के सूत्रों की रचना की है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वोपशमन – Sarvopashamana. Subsidence of all 28 Karmic Nature of delusion. मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियों का उदयाभाव करना । यह धर्मध्यान का फल है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ममकार – Mamakara. My-ness , A feeling of mine with worldly objects. आत्मा से भिन्न पर पदार्थों में मेरेपन का भाव ममकार हैं “
जम्बूवृक्षस्थल Region of Jambuvriksha (a super tree). जम्बूवृक्ष सामान्य स्थल ; ५०० योज.अन विस्तार युक्त है , मध्य में ८ योजन एवं किनारों पर २ कोस मोटा है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वानंत – Sarvaananta. All infinite. अनंत का एक भेद । आकष को धन रूप से देखने पर उसका अंत नहीं पाया जाता इसलिये उसे सर्वानंत कहते है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सम्यक् दर्शन : == सम्मद्दंसणलंभो वरं खु तेलोक्कलंभादो। —भगवती आराधना : ७४२ सम्यक् दर्शन की प्राप्ति तीन लोक के ऐश्वर्य से भी श्रेष्ठ है। यथार्थतत्त्व श्रद्धा सम्यक्त्वम्। —जैन सिद्धान्त दीपिका : ५-३ जीवादि तत्त्वों की यथार्थश्रद्धा (सम्यक्—विचार) करना सम्यक् दर्शन है। दर्शनभ्रष्टा: भ्रष्टा:, दर्शनभ्रष्टस्य नास्ति निर्वाणम्। सिध्यन्ति चरितभ्रष्टा:,…