स्थिति क्षय!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थिति क्षय -Sthitiksaya. Destruction of Karmic statesकर्मों की स्थिति का धात होना।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थिति क्षय -Sthitiksaya. Destruction of Karmic statesकर्मों की स्थिति का धात होना।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवप्रत्ययिक – Bhavapratyayika. Inherent clairvoyance – a type of clairvoyance (Avadhigyan). अवधिज्ञान के दो भेदों में प्रथम भेद; इसके होने में मुख्य रूप से भव निमित्त होता है , देव – नारकी जीवों को यह ज्ञान जन्म से ही होता है “
चैत्यद्रुम A type of divinely trees having idols of Lord Arihant in Samavasaran. चैत्यवृक्ष , जो समवशरण एवं देवों के भवन के अकृत्रिम मंदिरों में होते हैं , इनके मूलभाग में जिनप्रतिमाएं विराजमान रहती हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थानांग – Sthaanaamga. A part of scriptural knowledge (Dvadshang shrut).द्वादषंग श्रुत स्कंध का तीसरा अंग। इसमे 42000 पदो मे जीव के 10 स्थानो का वर्णन है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लघिना ऋद्धि – विक्रिया ऋशि का एक भेद, जिस ऋशि के प्रभाव से साधु अपने षरीर को वायु से भी हल्का बनाने मेे समर्थ थे। Laghima Rdhhi-A type of super natural power pertaining to turning body lighter than air
चरमशरीरी Beings to be salvated in the same birth. मोक्षगामी जीव; उसी भव से मोक्ष जाने वाला ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यक्त्वाचरण – Samyaktvaacharana. Right faith with auspicious activities. सच्चे देव, शास्त्र व गुरु की पूजा भक्ति आदि करना। सम्यकत्व के साथ पुण्यमयी आचरण को चारित्रपाहड़ मे सम्यक्त्वाचरण के नाम से कहा है। इसको देशमय रुप चारित्र नही समझना चाहिए।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लब्धिविधान व्रत – तीन वर्श तक हरे भादों माघ व चैत्र मास में कृ अमावस को एकासन 1 से तीन को तेला तथा 4 को एकासन करना एवं षीलव्रत पालते हुए ऊँ हीं महावीराय नम की त्रिकाल जाप करना। Labdhividhana Vrata-A particular type of fasting or vow
चित्रमती Mother’s name of the 8th Chakravarti (emperor) ‘Subhaum’. ८वें चक्रवर्ती ‘ सुभौम’ की माता का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]