एकत्वसप्ततिका!
एकत्वसप्ततिका Name of a book on soul theory. शुद्धात्म स्वरूप पर संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थ (ई.श्. 11 का उत्तारार्ध)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
एकत्वसप्ततिका Name of a book on soul theory. शुद्धात्म स्वरूप पर संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थ (ई.श्. 11 का उत्तारार्ध)।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]] पज्जुण्णचरिउ: Name of a book written by Kavisingh. ई0 श0 12 के अन्तपाद मे कवि सिंह क्षरा प्रधुम्न चरित्र विषयक रचित एक ग्रंथ ।
वाणिज्य – Vaanijya.: Trade, Commerce, Business, an important activity of livelihood. भगवान आदिनाथ द्वारा उपदेशित ष्टकर्मों में एक कर्म; व्यापार द्वारा आजीविका करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचाश्चर्य – Panchashchry Five spiritual & super wonder. देवकृत रत्नवर्षा, पुष्पवर्षा, गंधोदकवृष्टि, शीतल मंद सुगंधित वायु प्रवाह, दुंदुभि बाजे और अहोदनं अहोदनं की ध्वनी ” यह पंचाश्चर्य वृष्टि तीर्थकर भगवंत एवं विशेष महामुनियों के आहार में देवों द्वारा की जाती है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति अघाती – Prakrti Aghati. A type of karmic nature. कर्म प्रक्रति का एक भेद; जो प्रतिजिवी गुणों का घात करती हैं वह अघाती कर्म प्रक्रतियां कहलाती हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भविष्यकाल – Bhavisyakala. Future time. काल का एक भेद; अनागत काल , यह सर्व जीव राशि व सर्व पुददगलराशि से अनंतगुणा है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवेचन – Vivechana. Thorough investigation, Meaningful description or exposition of treatise. कथन, व्याख्यान, वर्णन, शास्त्रों के कथन करने की पध्दति का कथन करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] व्यंतर लोक –Vyaintara Loka. The world of peripatetic deities. चित्रा और व्रजा पृथिवी की मध्यसंधि से लगाकर मेरु पर्वत की ऊंचाई तक तथा तिर्यकृ लोक के विस्तार प्रभाव लम्बे – चौड़े क्षेत्र को व्यंतर लोक कहते है जहाँ व्यंतरदेवो के भवन, भवनपुर और आवास होते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचशरीर – Panchashareera. Five specified kinds of bodies having peculiar attributes. ओदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्मण शरीर “