मूल प्रायश्चित!
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूल प्रायश्चित–Mula Prayshchit. A special punishment for a saint –Re-initiation. किसी दोष विशेष से युक्त साधु को पुनः दीक्षा देना मूल प्रायश्चित कहलाता है”
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूल प्रायश्चित–Mula Prayshchit. A special punishment for a saint –Re-initiation. किसी दोष विशेष से युक्त साधु को पुनः दीक्षा देना मूल प्रायश्चित कहलाता है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सविपाक निर्जरा – Savipaaka Nirjaraa. Shedding off or dissociation of Karmas on maturity. निर्जरा के दो भेदों में एक भेद, कर्मो का अपने समय पर उदय में आकर झडना ।
देवगति (देव सामान्य) Celestial form, Divine life course. संसार परिभ्रमण की 4 गतियों (देव, नारकी, मनुष्य, तिर्यंच) में से एक गति । [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विसपर्ण –Visarpana. Expansion, Crawling, Slight expansion of soul-points. फैलाव, प्रसारण, विस्तार, रेंगना, सरकाना, दीपक के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों का संकोच-विस्तार (विसपर्ण) होता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वोपशम – Sarvopashama. Super subsidence (of Kamas). मिथ्यत्व आदि तीनो प्रकृतियों के उदयाभाव को सर्वोपशम कहते है। प्रथमोपशम सम्यक्त्व का लाभ भी सर्वोपशम से होता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वस्थिति – Sarvasthiti. Karmic aggregate at highest state. उत्कृष्ट स्थिति में रहने वाले (बद्धक्रम के ) सम्पूर्ण निषेकों का जो समू है वह सव्रस्थिति है।
छहढाला A book written by Pandit Daulatram – II. पं दौलतराम – II (ई. सन् १७९८-१८६६) द्वारा रचित एक ग्रन्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वश्यामा – Sarvasyaamaa. Mother’s Name of Lord Anantnath. तीर्थकर अनंतनाथ की माता, अपरनाम जयश्यामा ।
दूरास्वादित्व ऋद्धि Super distantial attainment of taste. जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु को रसना इन्द्रिय के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र से भी संख्यात योजन दूर स्थित खटटे, मीठे आदि अनेक प्रकार के रसों का स्वाद लेने की सामथ्र्य प्राप्त होती है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]