द्रव्य अप्रतिक्रमण!
द्रव्य अप्रतिक्रमण Reverential view for the accepted matters in the past. अतीतकाल में जो परद्रव्यों का ग्रहण किया था, उनको वर्तमान में अच्छा जानना , उनका संस्कार रहना, उनके प्रति ममत्व भाव का होना।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
द्रव्य अप्रतिक्रमण Reverential view for the accepted matters in the past. अतीतकाल में जो परद्रव्यों का ग्रहण किया था, उनको वर्तमान में अच्छा जानना , उनका संस्कार रहना, उनके प्रति ममत्व भाव का होना।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] व्यंजन शुद्धि –Vyaninjana Suddhi. Right & exact pronunciation of religious hymns, mystic syllables (mantras) etc. सूत्रों को दोष रहित पढ़ना व्यंजन शूध्दि है “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वसंवेदन – Svasammvedana. Self experience or intuition. आत्मानुभव, आत्मज्ञान।
दौलतराम Name of Pandits, who wrote a number of books on Jainism. पंडित 1. पदमपुराण, आदिपुराण , हरिवंशपुराण, आदि की वचनिका के कर्ता, क्रियाकोश, अध्यात्म बारहखड़ी आदि के कर्ता, समय- वि. 1777-1829। 2. छीढाला, पदसंग्रह के कर्ता (समय- वि. 1855-1923)। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सम्यग्दृष्टि : == भूयत्थमस्सिदो खलु, सम्माइट्ठी हवइ जीवो। —समयसार : ११ जो भूतार्थ अर्थात् सत्यार्थ शुद्ध दृष्टि का अवलम्बन करता है, वही सम्यग्दृष्टि है। जं कुणदि सम्मदिट्ठी, तं सव्वं णिज्जरणिमित्तं। —समयसार : १९३ सम्यग्दृष्टि आत्मा जो कुछ भी करता है, वह उसके कर्मों की निर्जरा के लिए ही…
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वर्णकूला कुंड – Svarnakuulaa Kumda. Name of a pond situated in Hairayavat region. हैरण्यवत क्षेत्रस्थ एक कुंड।
देहरहितता Bodilessness, the state of salvation (a virtue of Siddha). सिद्ध परमेष्ठी का शरीर से रहित होने का गुण।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्वर निमित ज्ञान – Svara Nimitta Jnnaana. Inferential knowledge caused due to have voice of beings. मनुष्य व तिर्यचो के विचित्र शब्दो को सुनकर शुभाषुभ को जान लेना स्वर निमित्त ज्ञान कहलाता है। देखे-स्वर।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वैताढय –Vaitadhya Another name of Vijayardhmountain, Range of some particular mountains in the middle of HaimvatKshetra (region) etc. विजयार्ध पर्वत का अपरनाम, हेमवत आदि अन्य क्षेत्रो के मध्य शब्दवान आदि कुटाकार पर्वत भी वैताढय कहलाते है “