तीर्थविहार!
तीर्थविहार Saints moving towards place of pilgrimages. मुनि, आचार्य आदि, साधुओं का तीर्थों के लिए गमन करना। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
तीर्थविहार Saints moving towards place of pilgrimages. मुनि, आचार्य आदि, साधुओं का तीर्थों के लिए गमन करना। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वज्रजंघ – Vajrajangha Past-birth(8th) name of Lord Rishabhdev, Name of a king in whose palace Lav & Kush were born, Name of a descendant of Vidyadhar Nami. 1. तीर्थंकर ऋषभदेव के आठवें पूर्वभव का जीव , जबकि उन्होंने अपनी रानी श्रीमती के साथ जंगल में युगलिया मुनियों को आहार दिया था ” इस आहारदान…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नेमिचंद्रिका – Nemichandrikaa. A book written by Pandit Manranglal. पं. मनरंगलाल (ई.1800-1832) कृत एक ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नीहार – Neehaara. Excreta (absence of it is an excellence of lard Arihant etc.), Heavy dew, Frost. मल-मूत्र त्याग (तीर्थंकरों के, उनके पिताओं के, बलदेवों के चक्रवर्ती के, अर्धचक्रवर्ती के, देवों के तथा भोगभूमिज के आहार होता है परन्तु नीहार नहीं होता है), ओस, कोहरा “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मिश्र प्रकृति–Mishra Prakrati. Karmic nature causing both right & wrong devotion. सम्यक–मिथियात्वरूप श्रद्धान या भाव उत्पन्न करने वाला कर्म”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नीतिवाक्यामृत – Neetivaakyaamrita. A book written by Aacharya Somdeva. आचार्य सोमदेव (ई. 943-968) द्वारा रचित एक ग्रन्थ “
तीर्थ Place of pilgrimage, auspicious means for the path of salvation. जो संसाररूपी सागर से तिराये अर्थात् पार करे उसे तीर्थ कहा गया है , इसका दो प्रकार से वर्णन है। 1. भावतीर्थ- सम्यग्दर्शन , सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र रूप परिणत आत्मा । 2. द्रव्य तीर्थ- तीर्थंकर भगवन्तों की पंचकल्याणक भूमियाँ, अन्य सिद्धक्षेत्र इत्यादि । जैसे –…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शिवकुमार बेला व्रत – Shivakumaara Belaa Vrata. A particular type of vow (fasting). 7-8 व 13-14 तिथि का बेला तथा 9-15 का पारणा ” इस प्रकार प्रतिमास 4 बेला व 4 पारणाएवं नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निस्तरण – Nistarana. To be with right perception-knowledge & conduct stricktly upto the ultimate time of death. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र का आमरण निर्दोष पालन करते हुए परीषह तथा उपसर्गों के उपस्थित रहने पर भी उनसे चलायमान होकर सम्यग्दर्शनादिको मरणांततक पहुँचा देने को निस्तरण कहते हैं, जिसमें वें अन्य भाव से भी अपने साथ आ सके “