श्रुत :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == श्रुत : == अर्हद्भाषितार्थं, गणधरदेवै: ग्रन्थितं सम्यक्। प्रणमामि भक्तियुक्त:, श्रुतज्ञानमहोदिंध शिरसा।। —समणसुत्त : १९ जो अर्हत् के द्वारा अर्थरूप में उपदिष्ट है तथा गणधरों के द्वारा सूत्ररूप में सम्यक् गुंफित है, उस श्रुतज्ञान रूपी महािंसधु को मैं भक्तिपूर्वक सिर नवाकर प्रणाम करता हूँ।