जैनधर्म और आयुर्वेद आयुर्वेद हमारे देश की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है जिसे जीवन विज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे दैनिक जीवन यापन की प्रत्येक क्रिया आयुर्वेद के स्वास्थ्य सम्बन्धी सिद्धान्तों पर आधारित है। यही कारण है कि उन सिद्धान्तों से विचलित होने पर उसका तत्काल प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल रूप से…
मूलाचार सार पर्याप्ति अधिकार इस अधिकार में पर्याप्तियों का कथन करेंगे। यहाँ पर ‘पर्याप्ति’ यह उपलक्षण मात्र है। इससे पर्याप्ति देह काय संस्थान इन्द्रिय संस्थान योनि आयु प्रमाण योग वेद लेश्या प्रवीचार उपपाद उद्वर्तन स्थान कुल अल्पबहुत्व, स्थिति अनुभाग प्रकृतिबंध स्थिति बंध अनुभाग बंध प्रदेश बंध इसमें इन बीस सूत्र पदों का निरूपण किया गया…
जैन साधु की नग्नता निर्दोष है साधु शब्द हमें संयम और साधना की ओर ले जाता है। भारतीय संस्कृति आज विश्व के कोने कोने में अपने धर्म और अध्यात्म के कारण ही विख्यात हैं । भारत संचार के तमाम देशों में इसीलिए महान माना जाता है कि जितने भी बड़े—बड़े साधु, मुनि, महापुरूष, संत, महात्मा,…
विश्व भाषा परिदृश्य में प्राकृत भाषा आज यह तथ्य निर्विवादरूप से स्वीकृत हो चुका है कि सिन्धु-सभ्यता की भाषा ‘प्राकृत’थी।आर.पी. देशमुख, ‘इण्डस् सिविलाईजेशन: ऋृग्वेद एवं हिन्दू कल्चर, अ. १९, पृ. ३६७ । प्राकृत और संस्कृत भारतीय संस्कृति के वाहक भाषारूपी रथ के चक्रयुगल हैं। चिरकाल से भारतीय वाङमय-प्रसाद के शिल्पियों ने इन भाषाओं का यथेच्छ…
मनोकामना सिद्धि महावीर व्रत एवं मंत्र व्रत विधि— जैनशासन में पर्वों की भांति ही अनादिकाल से व्रतों की परम्परा भी चली आ रही है जिनमें दो प्रकार के व्रत प्रचलित हैं-१. सोलहकारण, दशलक्षण, पंचमेरु, आष्टान्हिका, रत्नत्रय आदि पर्वों में किये जाने वाले व्रत अनादि कहलाते हैं तथा रोहिणी, रविव्रत, पंचकल्याणक आदि व्रत सादि कहलाते हैं।…