ग्रंथों के अध्ययन-अध्यापन की शैली
ग्रंथों के अध्ययन-अध्यापन की शैली गुरूणां परिपाट्याहं, श्रुतं लब्ध्वा नयद्वयात्। निर्देशयामि भव्येभ्य:, जिनशासनवृद्धये।।१०।। गुरुओं की परम्परा से श्रुतज्ञान को प्राप्त करके मैं दोनों नयों के आश्रय से जिनशासन की वृद्धि के लिये भव्यों को उपदेश देऊँगा। ड अध्ययन अर्थात् ग्रंथों को पढ़ना और उसका मनन करना तथा अध्यापन अर्थात् शिष्यों को पढ़ाना, अभ्यास कराना। किसी…