सोलह कारण पर्व श्रेयोमार्गानभिज्ञानिह भवगहने जाज्ज्वलद्दु:खदाव- स्कन्धे चंक्रम्यमाणानतिचकितमिमानुद्धरेर्यं वराकान्।। इत्यारोहत्परानुग्रहरसविलसद्भावनोपात्तपुण्यप्रव्र- न्तैरेव वाक्यै: शिवपथमुचितान् शास्ति योऽर्हन् स नोऽव्यात्।।१।। अर्थ- इस संसाररूपी भीषण वन में दु:खरूपी दावानल अग्नि अतिशय रूप से जल रही है। जिसमें श्रेयोमार्ग-अपने हित के मार्ग से अनभिज्ञ हुए ये बेचारे प्राणी झुलसते हुए अत्यंत भयभीत होकर इधर-उधर भटक रहे हैं। ‘‘मैं इन…
महापुराण प्रवचन-०१० श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! आदिपुराण में आपने जाना है कि राजा महाबल स्वर्ग में ललितांग देव हुए और निर्नामा नाम की कन्या स्वयंप्रभा देवी हुई। दोनों वहाँ खूब सुखपूर्वक रह रहे थे। तभी ललितांगदेव की आयु के छह माह शेष रहने पर ललितांगदेव के वंâठ की माला मुरझाने…
मानव संसाधन के विकास में जैन पारर्मािथक संस्थाओं के योगदान का मूल्यांकन मनीषा जैन जैन विद्या संगोष्ठी, १२-१४ मार्च २००५ में पठित आलेख शोध छात्रा—कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, ५८४, मात्मागांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर। निवास : ३२ सुखशान्तिनगर, इन्दौर सारांश इस आलेख में मुख्य रूप से मानव संसाधन के विकास में जैन पारमार्थिक संस्थाओं के योगदान का मूल्यांकन…
सुमेरु पर्वत सुमेरु पर्वत महाविदेह क्षेत्र के बहुमध्य भाग में सब तीर्थंकरों के जन्माभिषेक का आसनरूप मंदर नामक महापर्वत है। यह १००० योजन गहरा (नींव सहित), ९९००० योजन ऊँचा और नींव के तल भाग में १००९०, १०/११ योजन विस्तार वाला है। पृथ्वीतल पर इसका विस्तार १०००० योजन है और अंत में ९९००० योजन की ऊँचाई…
वन्दना के ३२ दोष वन्दना के ३२ दोष किदियम्मंपि करंतो ण होदि किदयम्मणिज्जराभागी। बत्तीसाणण्णदरं साहू ठाणं विराहंतो।।६१०।। गाथार्थ – इन बत्तीस स्थानों में से एक भी स्थान की विराधना करता हुआ साधु कृतिकर्म को करते हुए भी कृतिकर्म से होने वाली निर्जरा को प्राप्त नहीं होता है।।६१०।। वन्दना के ३२ दोष हैं। इन दोषों से…
गोपाचल दुर्ग का जैन पुरावशेष गोपाचल दुर्ग तीन ओर से सुन्दर पर्वत मालाओं से आवेष्टित दिल्ली, बम्बई राजमार्ग पर अवस्थित (२६०१३’ उत्तर व ७८०१२’ पूर्व) अपने प्राचीन वास्तु एवं मूर्तिशिल्प से समृद्ध है। प्राकृतिक सौन्दर्य से युक्त यह दुर्ग अपने सामरिक महत्व से ईसा की ३ सरी शताब्दी पूर्व ही विख्यात था, ग्वालियर गढ़ के…
श्री १००८ भगवान पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ‘पुण्योदय तीर्थ’-हाँसी —मुकेश जैन (सह सचिव) यह अतिशय क्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-१० महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय मार्ग पर है। यह हिसार की ओर तीसरा कि.मी. स्टोन है। तोमरवंशीय सम्राट् अनंगपाल प्रथम, जिन्होंने ७३६ ई. में वर्तमान दिल्ली को बसाया, उन के प्रतापी पुत्र राजकुमार द्रुपद ने हाँसी में…
भक्तामर स्तोत्र के बुन्देली पद्यानुवाद पर एक दृष्टि प्रो. (डॉ.) रतनचन्द जैन, संपादक ‘जिन भाषित’ आचार्यश्री मानतुंग रचित भक्तामर स्तोत्र संस्कृत जैन स्तोत्र साहित्य में अत्यन्त प्रसिद्ध एवं सर्वाधिक समादरणीय कृति है। इसका प्रत्येक पद्य मंत्र तुल्य माना गया है और विघ्नों के विनाश एवं विपत्तियों पर विजय प्राप्ति हेतु भक्तिपूर्वक इसका पाठ किया जाता…