जैन धर्म और इस्लाम
जैन धर्म और इस्लाम -डॉ. रमेशचन्द…
जैनधर्म एवं पर्यावरण-संरक्षण – प्राचार्य (पं.) निहालचंद जैन आज विश्व में – एक चेतावनी, चिन्तन और चेतना का दौर सा चल रहा है। चेतावनी का विषय है- पर्यावरण, चिन्तन का विषय है- पर्यावरण- प्रदूषण और चेतना का विषय है- ‘पर्यावरण का संरक्षण’। मनुष्य अपने स्वार्थ एवं आमोद-प्रमोद के लिए अतुल प्राकृतिक सम्पदा को नष्ट करने…
जैनदर्शन एवं पातञ्जलयोग दर्शन : एक तुलनात्मक अनुशीलन …
Chandragupt In his book, “Jainism or the early faith of Asoka”, Edward Thomas wrote: “That Chandragupta was a member of the Jaina community is taken by their writers as a matter of course and treated as a known fact, which needed neither argument nor demonstration. The documentary evidence to this effect is of comparatively early…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == मंदकषायी : == सर्वत्र अपि प्रियवचनं, दुर्वचने दुर्जने अपि क्षमाकरणम्। सर्वेषां गुणग्रहणम् , मन्दकषायाणां दृष्टान्ता:।। —समणसुत्त : ५९९ सर्वत्र ही प्रिय वचन बोलना, दुर्वचन बोलने वाले दुर्जन को भी क्षमा करना तथा सबके गुणों को ग्रहण करना— ये मंदकषायी जीवों के लक्षण हैं।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == मध्यस्थ : == विमलम्मि दप्पणे जह, पिडिबिंबइ पासवत्ति वत्थुगणो, मज्झत्थे तह मणुए, संकमइ समग्ग धम्मगुणो। मज्झत्था दोसं उज्झिऊण गिण्हंति वत्थु घेतव्वं, निय—निउणयाए हंसव्व नीरचागेण खीरलवं।। —कहारयणकोष : १५७ निर्मल दर्पण में जैसे पाश्र्ववर्ती वस्तु का प्रतिबिम्ब पड़ता है, वैसे ही मध्यस्थ प्रकृति वाले व्यक्ति में उसकी अपनी निपुण…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == भव्य : == य: धार्मिकेषु भक्त:, अनुचरणं करोति परमश्रद्धया। प्रियवचनं जल्पन् , वात्सल्यं तस्य भव्यस्य।। —समणसुत्त : २४२ जो धार्मिकजनों में भक्ति (अनुराग) रखता है, परम श्रद्धापूर्वक उनका अनुसरण करता है तथा प्रियवचन बोलता है, उस भव्य सम्यग्दृष्टि के वात्सल्य होता है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == मंगलाचरण : == अर्हन्तो भगवंत इन्द्र—महिता:, सिद्धाश्च सिद्धि—स्थिता:। आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा:, पूज्या उपाध्यायका:।। श्री सिद्धान्त—सुपाठका मुनिवरा, रत्न—त्रयाराधका:। पंचैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं, कुर्वन्तु नो मंगलम्।। —जैन मंगल विधान : १-२/१ इन्द्रों से जो पूजित हैं, वे अरिहंत भगवान् , मुक्ति में विराजमान सिद्ध भगवान्, जिनशासन की उन्नति करने वाले आचार्य देव,…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == भावशुद्धि : == मदमानमायालोभ—विर्विजतभावस्तु भावशुद्धिरिति। परिकथितं भव्यानां, लोकालोकप्रर्दिषभि:।। —समणसुत्त : २८२ लोक और अलोक को देखने तथा जानने वाले सर्वज्ञ प्रभु की भव्य जीवों के लिए यही देशना है कि मद, मान, माया और लोभ से रहित भाव ही भावशुद्धि है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == मद्यपान : == मद्येन नर: अवश: करोति कर्माणि निन्दनीयानि। इहलोके परलोके अनुभवति अनन्तकं दु:खम्।। —समणसुत्त : ३०६ मद्यपान करने से मनुष्य का अपने पर नियंत्रण नहीं रहता। फिर वह निन्दनीय कर्म किया करता है। (परिणाम यह होा है कि) इहलोक और परलोक में उसे अनन्त दु:खों का अनुभव…