कषाय :!
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] == कषाय : == ज्ञानेन च ध्यानेन च, तपोबलेन च बलान्निरुध्यन्ते। इन्द्रियविषयकषाया, धृतास्तुरगा इव रज्जुभि:।। —समणसुत्त : १३१ ज्ञान, ध्यान और तपोबल से इन्द्रिय—विषयों और कषायों को बलपूर्वक रोकना चाहिए, जैसे कि लगाम के द्वारा घोड़ों को बलपूर्वकर रोका जाता है। ऋणस्तोदकम् व्रणस्तोकम्, अग्निस्तोवंâ कषास्तोवंâ च। न हि भवद्भिर्विश्वसितव्यं, स्तोकमपि खलु तद् बहु…