प्रकृति निरन्तर!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति निरन्तर – Prakrti Nirantara. Karmic nature with continuous binding. कर्म प्रक्रतियां जो अंतर्मुहूर्त काल तक निरंतररूप से बंधती हैं वह निरंतर बंधी प्रक्रतियां कहलाती हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति निरन्तर – Prakrti Nirantara. Karmic nature with continuous binding. कर्म प्रक्रतियां जो अंतर्मुहूर्त काल तक निरंतररूप से बंधती हैं वह निरंतर बंधी प्रक्रतियां कहलाती हैं “
इंद्रिय अवग्रह Sensory apprehension. इन्द्रिय के द्वारा पदार्थ का प्रार्थमिक ग्रहण होना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सचित्त द्रव्य शल्य – Sachitta Dravya Shalya. A type of material sting; servants etc. animate objects. द्रव्य शल्य के तीन भेदों में एक भेद; दास आदि सचित्त द्रव्य शल्य है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रीपाल – Shreepaala. One who was got married with Mainasundari and was cured from leprosy by religious treatment, Name of king caused to Nemichandra Saidhantikdev to write Drivya Sangrah. चम्पापुर नगर के राजा अरिदमन का पुत्र ” मैना सुन्दरी से विवाहा गया ” कोढ़ी होने पर मैना सुन्दरी कृत सिद्धचक्र विधान के गंधोदक से…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संवाहन – Sanvaahana. Mountaineous dwelling place surrounded with forest. बहुत प्रकार के अरण्यों से युक्त महापर्वत के शिखर पर स्थित नगर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संवृत्त-विवृत्त – Sanvrtta-Vivrtta. A type of female genital organ with having some hidden & some opened portion. योनि के 9 भेदों में एक भेद; जो योनि स्थान कुछ ढका हुआ और कुछ खुला हुआ हो “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रावस्ती ( तीर्थ ) – Shraavastee (Teerth). Name of a place of pilgrimage, the birth place of Lord Sambhavanath, near Baharaich (U.P). उत्तरप्रदेश में बहराईच के निकट स्थित तीर्थंकर सम्भवनाथ की जन्मनगरी “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संप्रदाय विरोध – Sampradaaya Virodha. Castewise mutual contradiction. भिन्न-भिन्न जातियों में पारस्परिक विरोध “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मैथुन : == कम्प: स्वेद: श्रमो मूच्र्छा, भ्रमिग्र्लानिर्मलक्षय:। राजयक्ष्मादिरोगाश्च, भवेयुर्मैथुनोत्थिता:।। —योगशास्त्र : २-७८ मैथुन से कंपकंपी, स्वेद—पसीना, श्रम—थकावट, मूर्छा—मोह, भ्रमि—चक्कर आना, ग्लानि—अंगों का टूटना, शक्ति का विनाश, राज्यक्ष्मा—क्षय रोग तथा अन्य खांसी, श्वास आदि रोगों की उत्पत्ति होती है।