देहत्रय!
देहत्रय Three kinds of body. औदारिक , तैजस , कार्मण ये तीन शरीर।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
देहत्रय Three kinds of body. औदारिक , तैजस , कार्मण ये तीन शरीर।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
गिरनार(तीर्थ) Name of a place of pilgrimage, from where Lord Neminath got salvation. It is situated in Gujarat state. गुजरात प्रांत में स्थित भगवान नेमिनाथ की निर्वाणभूमि के नाम से प्रसिद्ध एक तीर्थ . जूनागढ़ में राहुल को ब्याहने हेतु बारात लेकर आये नेमिनाथ को पशु बंधन देखकर वैराग्य हो गया था, अतः उन्होंने वहाँ…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विभाव शक्ति – Vibhava Sakti. The power causing karmic binding with soul. जीव और कर्मों में परस्पर बंध को कराने वाली चुम्बक द्वारा खिंचने वाली लोहे की सुई के समान विभाव नाम की शक्ति ” वह जीव के ज्ञानादि भावों के विकार का कारण होती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संयमभाव – Sanyamabhaava. Restraintful temperament. उपशम भाव से धारण किये गये व्रतादि संयम भाव को प्राप्त हो जाते हैं “
गणितपरिकर्म A kind of Drishtivad Anga containing mathemati-cal contents. १२वें द्रिस्तीवाद अंग का एक भेद, जिसमें गणित के कारण सूत्रों का वर्णन है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मनोबल – Manobala. A type of super natural related to having complete knowledge of whole Shrut in Antarmuhurta, Mental strength. ॠद्धि ; श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तराय प्रकृतियों के उत्कृष्ट क्षयोपशम होने पर अन्तमुहूर्त काल में संपूर्ण श्रुत को जानना , 10 प्राणों में एक ; जीव की सोचने विचारने रूप शक्ति की अभिव्यक्ति…
चातुर्दीपिक भूगोल The name of an ancient composition of geography. एक भूगोल जो रायकृष्णदास जी के लेख के अनुसार वैदिक धर्मं में मान्य सप्तद्वीपिक भूगोल से अधिक प्राचीन है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
गंग Name of an Acharya possessing knowledge of 10 purvas and 11 angas. दस पूर्व और ग्यारह अंगधारी मुनियों में दसवें मुनि अपर्नाम गंगदेव था, हस्तिनापुर के राजा गंगदेव का पुत्र । [[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विभंग ज्ञानी – Vibhamga Jnani. One having false perception or knowledge. कुअवाधिज्ञान, मिथ्याद्रष्टि “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यज्ञोपवीत–Yagyopavit. Sacred thread (used for sanctifying or purificatory rites). एक संस्कार; चक्रवर्ती भरत ने 11 प्रतिमाओ के विभाग से वृतो के चिन्ह स्वरुप एक से लेकर 11 तार के सूत्र व्रतियो को दिये थे, जनेऊ; रत्नत्रय एवं सात परम स्थानो का सूतक 3 व 7 तारो का सूत्र” सभी पूजन–दान आदि क्रियाओ में…