वस्तुग्राही नय!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वस्तुग्राही नय – Vastugraahii Naya. A standpoint-accepting of partial knowledge of something. नय ;अनेकांतात्मक वस्तु के अंश को ग्रहण करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वस्तुग्राही नय – Vastugraahii Naya. A standpoint-accepting of partial knowledge of something. नय ;अनेकांतात्मक वस्तु के अंश को ग्रहण करना “
उरग A type of five sensed animal, Snake. पंचेन्द्रिय तिर्यंच का एक प्रकार सर्प।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
ई The fourth vowel of the Devanagari syllabary. देवनागरी वर्णमाला का चतुर्थ स्वर।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वसतिका – Vasatika.: Hermitage, staying place of saints. साधुओं के ठहरने का स्थान ” ध्यान – अध्ययन के योग्य निर्दोष शून्य स्थान ही उसके लिये उपयुक्त है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रजतप्रभ – कुंडलवर पर्वत के दक्षिण दिषा का प्रथम कूट Rajata Prabha-Name of the first summit of southern Kundalvar mountain
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वर्षायोग – Varshaayoga.: Four months rainy seasonal staying of Jain saints at some particular place with particular restrictions. चातुर्मास; जैन साधु – साध्वियों का वर्षाकाल (आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी से कार्तिक कृष्णा अमावस तक ) में मुख्यतः जीव विराधना से बचने हेतु एक स्थान पर रहना ” वर्षायोग सम्बन्धी प्रतिष्ठापना व निष्ठापना की विशेष विधि…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वर्तमान ग्राही नय – Vartmaana Graahii Naya.: A standpoint believing the present mode (Paryay). ऋजुसूत्र नय , जो भूत भावी पर्याय को छोड़कर वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण करता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सत् – Sat. Truth, Reality, Existence, Essence. पदार्थों का स्वतः सिद्ध अस्तित्व ” या उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त द्रव्य ” सता, सत्व, सामान्य, द्रव्य, वस्तु, अर्थ, विधि, सत् ये सर्व एकार्थवाची शब्द हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्म (स्वर्ग) – Brahma (Svarga). Name of the 3rd Patal (layer) of Brahmayugal and the fifth particular place of heaven. ब्रह्रायुगल का तृतीय पटल, कल्पवासी स्वर्गों का पाँचवा कल्प “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == नय : == तह ववहारेण विणा, परमत्थुवएसणमसक्कम्। —समयसार : ८ व्यवहार (नय) के बिना परमार्थ (शुद्ध आत्मतत्त्व) का उपदेश करना अशक्य है। स्वाश्रितो निश्चय:। —अध्यात्म सूत्र : १-८ स्व अर्थात् उस ही एक द्रव्य के आश्रय से जो बोध है, वह निश्चय—नय है। पराश्रितो व्यवहार:। —अध्यात्म सूत्र : १-९…