भाव स्त्री!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव स्त्री – Bhava Stri. Psychical female one. स्त्री वेद के उदय से पुरुष की अभिलाषा रूप मैथुन संज्ञा का धारक जीव “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव स्त्री – Bhava Stri. Psychical female one. स्त्री वेद के उदय से पुरुष की अभिलाषा रूप मैथुन संज्ञा का धारक जीव “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विद्दावण – Viddavana. Rending or splitting the body organs of beings for trade. प्राणियों के छेदन आदि का व्यापार विद्दावण कहलाता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भग्नावशेष – Bhagnavasesa. Ruins, broken remains. टूटे हुए अवशेष “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निश्चय उपगूहन – Nishchaya Upgoohana. Absolutely free from all passion. मुनि अवस्था में सिद्धों की अर्थात् शुद्धात्मा की भक्ति से युक्त होना और रागादी भावों से युक्त नहीं होना अर्थात् अपने निरंजन-निर्दोष आत्मा को दूषित करने वाले मिथ्यात्व रागादि विभावधर्मों का विनाश करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शशि – Shashi. The Moon, A king of Ikshvaku dynesty. चंद्रमा, इक्ष्वाकुवंशी एक राजा जो रवितेज का पुत्र था “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निवृत्त्यपर्याप्त – Nirvrttyapaparyaapta. Period of completion of eligible state (i.e. 6 Paryaptis) for body making in (Antarmuhurta). पर्याप्ति नामकर्म के उदय से युक्त जीव के जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो उतने काल तक उसे निर्वृति अपर्याप्त कहते है (अर्थात्एक समय कम शरीर-पर्याप्ति सम्बन्धी अन्तर्मुहूर्त पर्यत्न काल)” इस अवस्था को सर्वज्ञ ही जानते…
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष ]] == गुरु—विराधना : == यस्य गुरौ न भक्ति:, न च बहुमान: न गौरवं न भयम्। नापि लज्जा नापि स्नेह:, गुरुकुलवासेन किं तस्य ? —समणसुत्त : २९ जिसमें गुरु के प्रति न भक्ति है, न बहुमान है, न गौरव है, न भय (अनुशासन) है, न लज्जा है तथा न स्नेह है, उसका…
उपशामक Calming, Pacifying . जो जीव कर्मों के उपशामक करने में व्यापार करते हैं उन्हें उपशामक कहते हैं।[[श्रेणी:शब्दकोष]]