स्पृहा!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पृहा – Sprhaa. Longing, intention, desire.वांछा, इच्छा, कामना, अभिलाषा।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पृहा – Sprhaa. Longing, intention, desire.वांछा, इच्छा, कामना, अभिलाषा।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रत्नगर्भा – भगवान के गर्भ में आने के 6 महीने से पहले से 15 महीने तक जहा रत्नवृृश्टि होती है उस भूमि को रत्न गर्भा कहते है। Ratnagarbha-The land where divinely rain of gems occurred (related to the birth place of lord)
छक्कमुवष्स Name of a treatise pertaining to mundane activities. गृहस्थ षट्कर्म विषयक एक ग्रन्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पर्ष नाम कर्म प्रकृति – Sparssana Naama Karma Prakrti. Physique making karmic nature causing sense of touch in the body.उत्पन्न कर्म के उदय से शरीर मे ठंड, गरम आदि स्पर्ष का ज्ञान उत्पन्न होता है उसे स्पर्ष नाम कर्म प्रकृति कहते है। इसके स्निग्ध, रुक्ष, मृदु, कठोर, शीत, उष्ण, हल्का और भारी 8 भेद…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लधुत्व गति – तुबंडी, रूई आदि की उपर जाने वाली गति। Laghutva gati-Motion (speed) of cotton (Pertaining to going up-side in the atmosphere)
[[श्रेणी : शब्दकोष]] पूर्वाभिमुख – Purvabhimukha. See- Purvamukha. देंखें – पूर्वमुख “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] योतिमती मनुश्यनी – भाव से स्त्री वेद एव द्रव्य से पुरूश या स्त्री या नपुंसक वेद से संयुक्त मनुश्य, मनुश्यनी योतिमती मनुश्यनी कहते है। Yonimati Manusyani-Those human beings who are female according to Bhav ved But who might be male, female or hermaphrodite according to Dravya ved
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == रत्नत्रय : == सम्मद्दंसंण—णाणं चरणं मुक्खस्स कारणं जाणे। —द्रव्यसंग्रह : ३९ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग्चारित्र—यही रत्नत्रय मोक्ष का साधन है। तत्त्वरुचि: सम्यक्त्वं, तत्त्व—प्रख्यापकं भवेत् ज्ञानम्। पापक्रियानिवृत्तिश्चारित्रमुक्तं जिनेन्द्रेण।। —ज्ञानार्णव : ९१ जिनेन्द्र भगवान ने तत्त्वविषयक रुचि को सम्यग्दर्शन, तत्त्वविषयक ज्ञान को सम्यग्ज्ञान और पापमय क्रिया से निवृत्ति को सम्यक्…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थूल जीव – Sthuula Jiiva. One sensed beings having gross body.एकेन्द्रिय जीव के दो भेदो मे एक भेद। बादर जीव।