मूलस्थान प्रायश्चित!
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूलस्थान प्रायश्चित–Mulasthan Prayshchit. A repentance of a saint caused due to indiscipline activities. अपरिमित दोष या स्वछंद होकर कुमार्ग में प्रवृत्ति करने वाले साधु को दिए जाने वाला प्रायश्चित”
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूलस्थान प्रायश्चित–Mulasthan Prayshchit. A repentance of a saint caused due to indiscipline activities. अपरिमित दोष या स्वछंद होकर कुमार्ग में प्रवृत्ति करने वाले साधु को दिए जाने वाला प्रायश्चित”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वचनप्राण – Vachanprana.: Power of speech. जीव के 10 प्राणों में से एक प्राण; जीव की वचन व्यापर में कारणभूत योग्यता या शक्ति “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == वक्रता : == सो सद्दो तं धवलत्तणं च रयणायरम्मि उप्पत्ती। संखस्स हिययकुडिलत्तणेण सव्वं पि पब्भट्ठं।। —गाहारयणकोष : ११३ वही शब्द (ध्वनि), वही शुभ्र ताप और रत्नाकर में उत्पत्ति। यह सब कुछ होते हुए भी शंख अपने हृदय की वक्रता के कारण सर्वत्र भ्रष्ट होता है। व्यक्ति घर, धन,…
[[श्रेणी: शब्दकोष]] पक्वाशय: An inner organ of body, abdomen or belly औदारिक शरीर का एक अंग, आमाष और पक्वाषय में 16 आंते रहती है।
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूक दोष–Muuk Dosh. A fault committed while paying reverence to Lord. वंदना के 32 दोषों में एक दोष; मन–मन में पढना ताकि दूसरा न सुने अतवा अथवा वंदना करते करते बीच–बीच में इशारे करना”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वक्षार – Vakshaara: Particular 16 mountains in Videh Kshetra (region). विदेह के 32 क्षेत्रों को विभाजित करने वाले अनादिनिधन 16 पर्वत “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निष्क्रांति क्रिया –Nishkraanti Kriyaa. An auspicious and sacred act (related to initiation). गर्भान्वय की 53 क्रियाओं में एक क्रिया; दीक्षा कल्याणक की क्रियाएं, वैराग्य पूर्वक राज्य को त्यागना इत्यादि क्रियाओं के साथ दिगम्बर व्रत को धारण कर केशलोच आदि करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रशमभाव-पंचेन्द्रियों के विषयों में शिथिल मन का होना ही प्रशम भाव कहलाता है”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकीर्णक देव – Prakirnaka Deva. A type of deites (as common citizens). देवों के दश भेदों में से एक; जो देव प्रजा के समान होते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वंदना मुद्रा –Vandanaa Mudraa : Standing posture of paying reverence by raised & folded hands with joined palms. मुद्रा के 4 भेदों में एक भेद ;खड़े होकर दोनों कुहनियों को पेट के ऊपर रखना और दोनों हाथों को मुकुलित कमल के आकार में बनाना “