चतुर्थीविद्या!
चतुर्थीविद्या The 4th ethical propounded knowledge (Dandniti). आन्वीक्षिका , त्रयी , वार्ता , दण्डनीति इन ४ विद्यालयों में चौथी दंडनीति विद्या ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चतुर्थीविद्या The 4th ethical propounded knowledge (Dandniti). आन्वीक्षिका , त्रयी , वार्ता , दण्डनीति इन ४ विद्यालयों में चौथी दंडनीति विद्या ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == ज्ञानी : == केवलसत्तिसहावो, सोहं इदि चिंतए णाणी। —नियमसार : ९६ ‘मैं केवल—शक्ति स्वरूप हूँ’—ज्ञानी ऐसा िंचतन करे। जह कणयमग्गितवियं पि, कणयभावं ण तं परिच्चयइ। तह कम्मोदयतविदो, ण जहदि णाणी दु णाणित्तं।। —समयसार : १८४ जिस प्रकार स्वर्ण अग्नि से तप्त होने पर भी अपने स्वर्णत्व को नहीं…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुद्गलयुति – Pudgalayuti. Assemblage of matters. द्र्व्ययुती का एक भेद; एक स्थान पर पुद्गलों का मिलना “
देवपूजा Worshipping of Lord Arihant. श्रावक के षट्आवश्यक कत्र्तव्यों में प्रथम कत्र्तव्य अष्ट द्रव्यों से अरहंत, सिद्ध भगवन्तों की पूजा करना। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == स्यद्वाद : == सप्तैव भवन्ति भंगा, प्रमाणनयदुर्नयभेदयुक्ता अपि। स्यात् सापेक्षं प्रमाण:, नयेन नया दुर्नया निरपेक्षा:।। —समणसुत्त : ७१६ (अनेकान्तात्मक वस्तु की सापेक्षता के प्रतिपादन में प्रत्येक वाक्य के साथ ‘स्यात्’ लगाकर कथन करना स्याद्वाद का लक्षण है।) इस न्याय में प्रमाण, नय और दुर्नय के भेद से युक्त…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] व्यक्ति –Vyakti Person, one that can be described or expressed. मनुष्य, जो व्यक्त होता हैं उसे व्यक्ति कहते हैं (अपरनाम अभिव्यक्ति ) “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुचिदत्त – Shuchidatta. The 4th chief disciple of Lord Mahavira. तीर्थंकर महावीर के चौथे गणधर “
त्रींद्रिय Living beings having three sense organs. जीव जिनके स्पर्शन , रसना और घ्राण इन तीन इन्द्रियधारी तिर्यंचों में जन्म हो। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]