पुष्पमाल!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुष्पमाल – Puspamala. See- Puspacura. देंखे- पुष्पचुड “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुष्कल – Puskala. An area of the eastern Videh (region), Name of a summit & its protecting deity of Ekashail Vakshar situated in the eastern Videh (region). पूर्व विदेह का एक क्षेत्र, पूर्व विदेह स्थित एकशैल वक्षार का एक कूट एवं उसका रक्षक देव “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष ]] == दया : == दयामूलो भवेद्धर्मो दया प्राण्यनुकम्पनम्। दयाया: परिरक्षार्थं गुणा: शेषा: प्रर्कीितता:।। —आदिपुराण : ५-२७ धर्म का मूल दया है। प्राणी पर अनुकम्पा करना दया है। दया की रक्षा के लिए ही सत्य, क्षमा शेष गुण बताए गए हैं। मा हससु परं दुहियं कुणसु दयं णिच्चमेव दीणम्मि। —कुवलयमाला :…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुरुषपुंडरीक – Purusapumdarika. Name of the main listener in the Samavsharan of Lord Anantnath, Name of the 6th Narayan. भगवान अनन्तनाथ के समवसरण में मुख्य श्रोता का नाम, छठे नारायण का नाम “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रणिधान – Pranidhaana. Concentrating the mind on particular object. स्मरण की इच्छा से मन को एक स्थान में लगाने का ‘नाम’ प्रणिधान है ” परिणाम, प्रयोग व प्रणिधान ये एकार्थवाची शब्द है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सकलचारित्र – Sakalachaaritra. Conduct devoid of all attachments & possessions. समस्त प्रकार के परिग्रह से रहित होकर 5 महाव्रतों को धारण करना सकल चारित्र है, यह मुनियों के होता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रच्छन्न – Prachchhanna. Hidden, concealed, an infraction of self-criticism-asking for the repentance of own fault indirectly. आच्छादित, छिपा हुआ, आलोचना का एक दोष; प्रच्छन्न रूप से किये गये पाप के प्रायश्चितका उपाय पूछना “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष ]] == काल : == स्पर्शरसगन्धवर्णव्यतिरिक्तम् अगुरुलघुकसंयुक्तम्। वर्तनलक्षणकलितं कालस्वरूपम् इदं भवति।। —समणसुत्त : ६३७ स्पर्श, गन्ध, रस और रूप से रहित, अगुरु—लघु गुण से युक्त तथा वर्तना लक्षण वाला काल द्रव्य है। जीवानां पुद्गलानां भवन्ति परिवर्तनानि विविधानि। एतेषां पर्याया वर्तन्ते मुख्यकाल आधारे।। —समणसुत्त : ६३८ जीवों और पुद्गलों में नित्य होने…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्मेश्वर – Brahmesvara. Name of the ruling demigod of Lord Shitalnath. शीतलनाथ भगवान का शासन यक्ष “