कायक्लेश :!
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष]] == कायक्लेश : == सुखेन भावितं ज्ञाने, दु:खे जाते विनश्यति। तस्मात् यथाबलं योगी, आत्मानं दु:खै: भावयेत्।। —समणसुत्त : ४५३ सुखपूर्वक प्राप्त किया हुआ ज्ञान दु:ख के आने पर नष्ट हो जाता है। अत: योगी को अपनी शक्ति के अनुसार दु:खों के द्वारा अर्थात् कायक्लेशपूर्वक आत्म-चिन्तन करना चाहिए।