जैन धर्म संस्कृति का एक सिद्ध क्षेत्र-नरवर नरवर, ग्वालियर का समीपवर्ती एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र है। लोदी शासकों के बर्बर आक्रमण से नष्ट हुआ यह कला एंव संस्कृति का केन्द्र सम्प्रति खण्डहर रूप है तथापित इतिहास एवं पुरातत्व विषयक अमूल्य सामग्री को संरक्षित किये हैं। प्रस्तुत आलेख में इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं सांस्कृतिक सम्पन्नता का…
२० – सीता निर्वासन-पुत्र मिलन श्रीरामचन्द्र अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। सखियों सहित सीता वहाँ आकर विनय पूर्वक नमस्कार कर यथोचित आसन पर बैठ जाती हैं पुनः निवेदन करती हैं- ‘‘हे नाथ! रात्रि के पिछले प्रहर में आज मैंने दो स्वप्न देखे हैं सो उनका फल आपके श्रीमुख से सुनना चाहती हूँ।’’ ‘‘कहिए प्रिये! वो…
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र आहू —पवन जैन गंगवाल, प्रताप मार्ग, धार (म.प्र.) इन्दौर नगर से ६५ कि.मी. एवं धार नगर से १३ कि.मी. दूर पश्चिम दिशा में श्री संकटमोचन आहू पार्श्वनाथ दि.जैन अतिशय क्षेत्र, आहू में स्थित है। इन्दौर-धार-अहमदाबाद मार्ग से जुड़ा होने के कारण यहाँ आवागमन सुलभ है। मालवा की भूमि पर…
महापुराण प्रवचन-२ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। जिनसेन स्वामी ने कहा है-यह युग का आद्य कथानक बताने वाला इतिहास है। सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव ने जहाँ जन्म लेकर दीक्षा ली वह प्रयाग तीर्थ सर्वभाषामय तीर्थ का उद्भव स्थल है। भरत के प्रश्न पर वृषभसेन गणधर ने अनेक उत्तर बताये उसी परम्परा में भगवान…
मोह का नाश कैसे हो ? मोह को नाश करने के लिए कारणभूत जिनेन्द्रदेव का उपदेश है, उस उपदेश को अर्थात् जिनेन्द्रदेव की वाणी को प्राप्त करके भी पुरुषार्थ ही अर्थ क्रियाकारी है। बिना पुरुषार्थ के मोह का नाश नहीं किया जा सकता है- जो मोहरागदोसे णिहणदि उवलब्भ जोण्हमुवदेसं। सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण१।। ८८।।…