अपरिग्रह :!
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] == अपरिग्रह : == यो ममायितमिंत जहाति, स त्यजति ममायितम्। स खलु: दृष्टपथ: मुनि:, यस्य नास्ति ममायितम्।। —समणसुत्त : १४२ जो परिग्रह की बुद्धि का त्याग करता है, वही परिग्रह को त्याग सकता है। जिसके पास परिग्रह नहीं है, उसी मुनि ने पथ को देखा है। ग्रंथत्याग: इन्द्रिय—निवारणे, अंकुश इव हस्तिन:। नगरस्य खातिका…