ईर्यापथशुद्धि भक्ति
ईर्यापथशुद्धि भक्ति(हिन्दी पद्यानुवाद) हे भगवन् ! मैं निःसंग हो, जिनगृह की प्रदक्षिणा करके। भक्ती से प्रभु सन्मुख आकर, करकुड्मल शिर नत करके।। निंदारहित दुरितहर अक्षय, इंद्रवंद्य श्री आप्त जिनेश। सदा करूँ संस्तवन मोहतमहर! तव ज्ञानभानु परमेश।।१।। जिनमंदिर श्रीयुत पावन, अकलंक अनंतकल्प सच में। स्वयं हुए अकृत्रिम सब, मंगलयुत प्रथम तीर्थ जग में।। नित्य महोत्सव सहित...