आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज के उपदेश के कतिपय अंश आचार्य शान्तिसागर जी ने ३६ दिन की सल्लेखना ग्रहण की थी। सल्लेखना के २६वें उपवास के दिन उन्होंने यह सन्देश दिया था, कि अपने जीवन में संयम धारण करो इसे मत। समाधि के समय उनकी उम्र ८४ वर्ष की थी। उनकी समाधि कुन्थल गिरी पर ६…
तिथिह्रास में व्रत करने का विधान त्रिमुहूत्र्तेषु यत्रार्व उदेत्यस्तं समेति च। सा तिथि: सकला ज्ञेया उपवासादिकर्मणि।।११।। संस्कृत व्याख्या—यस्यां तिथौ त्रिमुहूत्र्तेष्वग्रे वर्तमानेषु षट्स्वर्व: उदेति सा तिथि: दैवसिकव्रतेषु रत्नत्रयाष्टाह्निकदशलाक्षणिकरत्नावलीकनकावलीद्विकावल्येकावलीमुक्तावलीषोडशकारणादिषु सकला ज्ञेया। चकारात् या तिथि: उदयकाले त्रिमुहूत्र्ताद्दिनागतदिवसेऽपि वर्तमाना तिथ्युदयकाले त्रिमुहत्र्तादिना गतदिवसेऽपिवर्तमाना तिथि: त्रिमुहूत्र्तादिना सा अस्तंगता तिथिज्र्ञेया। तद्व्रतं गतिदिवसे एव स्यात् अर्वस्तमनकाले त्रिमुहत्र्ताधिकत्वादिति हेतो:। चशब्दात् द्वितीयोऽर्थोऽपि ग्राह्य: त्रिमुहूत्र्तेषु सत्सु…
दिगम्बर जैन मंदिर, शिवपुरी के महत्त्वपूर्ण जैन कलावशेष सारांश जैन पुरातत्व में पुरास्थलों पर बिखरे र्मूित एवं स्थापत्य अवशेषों के अलावा भारी संख्या में कलाकृतियां नगरों में स्थित जैन मंदिरों में सुरक्षित हैं जिन पर पुराविदों का ध्यान है तो है किन्तु कई कारणों से वे इन मंदिरों में प्रवेश नहीं कर पाते हैं जिससे…
धरती के देवता सिद्ध पद के इच्छुक जो महापुरुष पंचेन्द्रिय के विषयों की इच्छा समाप्त करके सम्पूर्ण आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर देते हैं तथा ज्ञान, ध्यान और तप में सदैव तत्पर रहते हैं, वे ही मुक्तिपथ के साधक होने से सच्चे साधु कहलाते हैं। वे महामना दिगम्बर अवस्था को धारण कर लेते हैं।…
मुनि चर्या जिनशासन में मार्ग और मार्गफल इन दो का ही वर्णन किया गया है। इनमें से मार्ग तो रत्नत्रय को कहते हैं और उसका फल मोक्ष है। रत्नत्रय को धारण करने वाले व्यक्ति मोक्ष की साधना करने वाले हैं अत: उन्हें साधु, यति, मुनि, अनगार, ऋषि, संयत और संयमी आदि नामों से जाना जाता…
णमोकार महामंत्र एवं चत्तारिमंगल पाठ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।। चत्तारि मंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि-अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। …